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लेखनी प्रतियोगिता -24-Apr-2023 ये इश्क नहीं आसां

भाग 3 
रुकमणी को नई कंपनी में काम करते करते करीब एक वर्ष हो गया था । वह अब कुछ कुछ लोगों से घुलने मिलने लगी थी । इसी बीच उसके कुछ पुरुष साथियों ने उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया मगर रुकमणी ने उनमें कोई रुचि नहीं दिखाई थी । वह विगत अनुभवों को भूल नहीं पाई थी अभी तक । हां, कुछ महिला कर्मियों के साथ कुछ कुछ इंटीमेसी होने लगी थी उसकी । मिस लीना , मिसेज नायरा और मिसेज लवलीन से उसकी नजदीकियां बढने लगी थीं । 

उसकी जनरल मैनेजर सुदीप्ता के साथ बिल्कुल भी नहीं पटती थी । रुकमणी का कार्य सदैव उत्कृष्ट होता था । समय से पूर्व ही वह अपना कार्य समाप्त कर लेती थी । उसका आचरण और व्यवहार सदैव "डीसेंट" रहता था । समय की भी बहुत पाबंद थी वह । फिर भी सुदीप्ता को रुकमणी फूटी आंख नहीं भाती थी । उसने अपने बॉस पीटर और सबके बॉस आदित्य को पता नहीं उसके बारे में क्या कह दिया जो उनकी निगाहों में रुकमणी एक घमंडी और तुनक मिजाज लड़की नजर आने लगी । 

एक दिन आदित्य ने उसे बुलवा लिया । यह उसकी आदित्य से पहली मुलाकात थी । आज तक आदित्य ने उसे बुलवाया नहीं था । रुकमणी के मस्तिष्क में सैकड़ों सवाल कौंधने लगे । "क्या बात हो सकती है ? मुझसे कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई है ? पता नहीं सुदीप्ता ने उसके बारे में कुछ उलटा सीधा तो नहीं पो दिया है" ? ऐसे अनेक प्रश्न थे मगर जवाब एक भी नहीं था रुकमणी के पास । 

रुकमणी ने आदित्य के पास जाने से पहले एक बार अपने ड्रेसिंग रूम में अपनी शक्ल मिरर में देखी । लिपस्टिक ठीक की । बालों को थोड़ा और लहरा दिया और एक लट आगे की ओर निकाल ली । चेहरे पर थोड़ी मुस्कान उकेरी और अंदर ही अंदर आत्मविश्वास की थोड़ी अलख जगाई । दुपट्टे को संभाला और सधे कदमों से वह आदित्य के केबिन की ओर चल दी । 
"नमस्ते सर" उसने थोड़ा झुककर कहा "आपने मुझे याद किया था सर" ? 
".... अ आ .. मिस रुकमणी ? एम आई राइट" ? अपने आपमें उलझते हुए आदित्य बोला 
"यस सर । यू आर एबसोल्यूटली राइट, सर । माई नेम इज रुकमणी" । रुकमणी ने पूर्ण आत्मविश्वास से कहा 
"ओह, आओ आओ रुकमणी जी । प्लीज बी सीटेड । दरअसल मैंने आपको इसलिए बुलवाया है कि आपकी वार्षिक रिपोर्ट तैयार होकर मेरे पास आई है । मैं उसे देख रहा था । आपकी परफॉर्मेंस से मैं बहुत खुश हूं । आपने उम्मीद से बहुत ज्यादा अच्छा काम किया है । आपको बहुत बहुत बधाई । आप हमारी कंपनी की एक बहुमूल्य ऐसैट सिद्ध हुई हैं । मगर .." आदित्य बोलता बोलता रुक गया 
"मगर क्या सर" ? रुकमणी की आवाज में हल्की सी चिंता थी । 
"कुछ खास नहीं । अपने इमीजिएट बॉस को खुश रखना चाहिए या नहीं" ? हंसते हंसते आदित्य ने पूछा 

रुकमणी को समझ में आ गया कि सुदीप्ता ने आदित्य के कान भरे हैं । पर उसने तो कुछ गलत नहीं किया,  फिर भी ? यह बात उसे अच्छी नहीं लगी । उसने दृढता से कहा 
"मेरी गलती क्या है सर ? मुझे कैसे इम्प्रूव करना चाहिए सर, आप ही बता दीजिए" । रुकमणी ने नीची नजरें किये हुए कहा 
"नो नो नो मिस रुकमणी । डोन्ट टेक इट अदरवाइज । मेरे पास किसी की राय थी आपके बारे में । पर कोई जरूरी नहीं कि वह राय सही ही हो । आज पहली बार मैं आपसे मिल रहा हूं इसलिए मैं आपके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता । आपकी रिपोर्ट और आपका व्यवहार दोनों ने मेरा दिल जीत लिया है । जहां तक किसी और की राय का प्रश्न है , मैं उस पर एकदम से विश्वास नहीं करता । अब मुझे लगता है कि मुझे आपको अपनी मीटिंग्स में बुलाना होगा तभी आपकी असली योग्यता से मैं वाकिफ हो सकूंगा । आज से मैं आपको जनरल मैनेजर बना रहा हूं । आप मिस्टर पीटर को रिपोर्ट करेंगी अब । अब ठीक है" ? आदित्य के होठों पर एक निर्मल मुस्कान थी । रुकमणी को आदित्य के व्यवहार में कहीं अभिमान, फ्लैटरिंग या दाब धौंस नजर नहीं आई । पता नहीं दूसरी लड़कियां आदित्य को इतना बुरा क्यों बताती हैं ? पर, इतनी जल्दी किसी के बारे में कोई राय नहीं बनानी चाहिए, यह रुकमणी बहुत अच्छी तरह जानती थी । 
"कहां खो गई मिस रुकमणी" ? आदित्य ने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा 
"ओह, सॉरी सर । आपने इतनी अच्छी खुशखबरी दी है तो ध्यान वहीं चला गया था । थै॔क यू सो मच सर । मुझे उम्मीद नहीं थी कि एक साल में ही मेरा प्रमोशन हो जायेगा । एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद सर" रुकमणी आदित्य की कृपा से दबी जा रही थी । 
"अभी रुको जरा । कल से आपको कंपनी का व्हीकल मिलेगा और मकान किराया भी तीस हजार से बढकर पचास हजार प्रति माह मिलेगा । आप और भी अच्छे मकान में रह सकती हैं अब" । आदित्य के चेहरे पर अभी भी मासूम सी मुस्कान थी । उसके चेहरे से बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वह उस पर बेजां "कृपा" कर रहा था या वह उससे कुछ "प्रतिफल" चाहता था । रुकमणी ने एक बार फिर से उसको धन्यवाद दिया और अपने केबिन में आ गई । 

अब एक बार उसने फिर से अपना चेहरा आईने में देखा । अब उसके चेहरे पर अधिक विश्वास चमक रहा था और इस कारण गालों पर हलकी हलकी लालिमा आ गई थी । उसके होंठ कुछ और ज्यादा सुर्ख हो गये थे और चेहरा गर्व से तन गया था । भाव भंगिमा में भी बदलाव आ गया था । 

पर एक बात उसे खल रही थी "इमीजिएट बॉस को खुश रखना चाहिए" ऐसा क्यों कहा था बॉस ने ? इसका मतलब है कि सुदीप्ता ने बॉस के कान भरे थे । उसकी इमीजिएट बॉस वही थी । इसका मतलब है कि सुदीप्ता को ठीक से जानना होगा । उसने अपने दिमाग पर थोड़ा जोर दिया तो उसे ध्यान आया कि मिस लीना सुदीप्ता के काफी नजदीक थी । लीना और सुदीप्ता दोनों ही अविवाहित थी शायद इसीलिए दोनों में खूब पटती थी । उसे सुदीप्ता के बारे में पता करना होगा कि वह उससे चिढती क्यों है ? इसके लिए उसे मिस लीना से दोस्ती करनी होगी । मिस लीना उसकी ही तरह मैनेजर थी और वह भी सुदीप्ता के अंडर काम करती थी । रुकमणी उठकर लीना के केबिन में चली गई । 

अचानक रुकमणी को अपने केबिन में देखकर लीना खुश हो गई और बोली "अरे आप ? मुझे बुलवा लिया होता " ? 
"यूं ही थोड़ा बोर हो रही थी इसलिए कुछ गपशप करने के लिए आ गई । ज्यादा बिजी तो नहीं हो आप" ? रुकमणी लीना पर कुछ अधिक लाड़ बरसा कर बोली 
"नहीं नहीं, बिल्कुल नहीं । आप बैठिए न । बताइये आप क्या लेंगीं ? कोल्ड कॉफी या कोक" ? 
"एज यू विश मैम" 
"नो नो , नो मैम । से ओनली लीना" लीना रुकमणी के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर बोली 
"ओके लीना । कोल्ड कॉफी पसंद है मुझे" 

लीना ने दो कोल्ड कॉफी का ऑर्डर दे दिया । फिर दोनों ऑफिस की गपशप करने में व्यस्त हो गई । बातों बातों में रुकमणी ने सुदीप्ता का प्रसंग छेड़ दिया 
"सुदीप्ता मैम ने शादी क्यों नहीं की लीना" ? रुकमणी ने लीना की आंखों में देखकर कहा 
"बड़ी लंबी कहानी है मैम" लीना बोली 
"आप भी मैम ? ये नहीं चलेगा" । रुकमणी हंसते हुए बोली 
"ओ सॉरी रुकमणी जी" 
"कोई नहीं । आप मुझे रुक्को कहकर बुला सकती हो" रुकमणी उसके नजदीक आते हुए बोली 
"अरे वाह ! गजब । तो रुक्को मैं सुदीप्ता मैम के बारे में बताती हूं" । 

मिस लीना ने अपनी केबिन का गेट बंद कर लिया और केबिन के अंदर रेस्ट रूम में रुकमणी को लेकर आ गई । वहां पर एक दीवान बिछा था । दोनों उस पर बैठ गईं । 

रुकमणी बोली "सुदीप्ता जी कलकत्ता में जब कॉलेज में पढती थी तब ये वामपंथी आंदोलन की छात्र इकाई की मुखर लीडर थीं । बहुत ही क्रांतिकारी विचार थे इनके । छात्र नेतागिरी करते करते इनकी पहचान में बहुत सारे नेता लोग आ गये । उस समय विश्व विद्यालय के अध्यक्ष सुमित मुखर्जी से इनकी दोस्ती हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई । दोनों की मुहब्बत के किस्से कलकत्ता की चाय की दुकानों, कॉफी हाउस और मैखानों में अक्सर सुने जाने लगे । दोनों अक्सर साथ ही रहते थे । सुदीप्ता कई कई दिन तक अपने घर नहीं नहीं जाती थी और हॉस्टल के सुमित के कमरे में ही रुक जाती थी । सुमित और सुदीप्ता दूध और पानी की तरह मिल गये थे । 

एक दिन पता चला कि सुदीप्ता गर्भवती है । सुदीप्ता ने सुमित को शादी करने को कहा पर सुमित ने कहा "पार्टी ने उसे एम एल ए का टिकिट दे दिया है । चुनावों के बाद शादी कर लेंगे" । सुदीप्ता मान गई । चुनाव हो गये और सुमित जीत भी गया । पार्टी ने उसे मंत्री भी बना दिया । अब सुमित के पास बड़े बड़े घरानों से शादी के ऑफर आने लगे । सुदीप्ता ने फिर कहा शादी के लिए मगर अब सुमित के पास उसके लिए वक्त कहां था ? सुमित से मिलना ही अब तो टेढी खीर हो गया था । थक हार कर एक दिन सुदीप्ता अस्पताल गई और अपना पांच महीने का बच्चा गिरा आई । उस दिन वह बहुत टूटी हुई थी । उसके बाद फिर कभी दोनों नहीं मिले । पहले प्यार में धोखा मिलने से सुदीप्ता बुरी तरह टूट गई थी । 

सुदीप्ता की इस हालत को देखकर उसके घरवाले बहुत परेशान हो गये थे । सुदीप्ता की यादों में अभी भी सुमित बसा हुआ था । सुदीप्ता के पिता ने सोचा कि जब तक वे लोग कलकत्ता में रहेंगे तब तक सुदीप्ता सुमित को भुला नहीं पायेगी । इसलिए वे लोग अपना मकान बेचकर दिल्ली आ गए और दिल्ली में आकर रहने लगे । 

दिल्ली में सुदीप्ता की शादी की तैयारी होने लगी । यहां उनको जानने वाला कोई नहीं था इसलिए सुदीप्ता की प्रेम कहानी किसी को पता नहीं थी । एक साउथ इंडियन परिवार में सुदीप्ता की शादी हो गई । सुदीप्ता ने शादी तो कर ली मगर वह अपने पति को अपना नहीं पाई । कई महीनों तक उसने अपने पति को अपने बिस्तर पर सोने नहीं दिया । वह कब तक इंतजार करता ? एक दिन उसने सुदीप्ता को अपने घर से निकाल दिया । सुदीप्ता अपने मायके वापस आ गई । उसके मम्मी पापा ने उसे खूब बुरा भला कहा । उसे समझा बुझाकर वापस अपने पति के पास जाने के लिए कहा मगर सुदीप्ता इसके लिए तैयार नहीं हुई । वह एक हारी हुई नारी लग रही थी । 

बाद में उसने यह कंपनी ज्वाइन कर ली । यहां उसे पीटर सर मिल गये । पीटर सर उसके बॉस थे । पीटर सर को नित नई लड़कियों का शौक था इसलिए उन्होंने सुदीप्ता पर डोरे डालने शुरू कर दिये । पीटर सर का व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि हर लड़की उनकी ओर खिंची चली जाती थी । सुदीप्ता भी एक कटी पतंग की तरह पीटर सर की गोदी में गिर गई । सुदीप्ता की जिंदगी में फिर से बहार आ गई । वह फिर से गुलाब की तरह खिल गई । दोनों जने रात रात भर खूब मस्ती किया करते थे । कुछ महीने सुदीप्ता पीटर सर के घर में ही रही । 

यहां पर एक बार फिर से वही कहानी दुहराई गई । सुदीप्ता एक बार फिर से गर्भवती हो गई । पीटर सर तो विवाह को न तो मानते थे और न ही जानते थे इसलिए उन्होंने साफ इंकार कर दिया और कह दिया कि उन्हें बच्चे में कोई दिलचस्पी नहीं है । यदि उसे रखना है तो सुदीप्ता अपनी जिम्मेदारी पर रखे अन्यथा निकलवा दे । सुदीप्ता बच्चा चाहती थी लेकिन अकेली जिम्मेदारी लेना नहीं चाहती थी । एक दिन फिर से वह अपना बच्चा गिरवाने अस्पताल गई  । उस दिन के बाद से सुदीप्ता को मर्द जाति से घृणा हो गई । वह अपना घर छोड़कर एक फ्लैट में आ गई और अब उसमें अकेली रहती है । 
"अकेली कैसे टाइम पास करती हैं वह" ? रुकमणी ने बड़ी मुश्किल से पूछा 
"आजकल अकेले टाइम पास करना कोई बड़ी बात नहीं है । मैं भी अकेली हूं और हमारे जैसी और भी अनेक सिंगल वूमन हैं । हम लोगों ने एक क्लब बना रखा है । बस, उसमें टाइम पास हो जाता है" । लीना हंसते हंसते बोली 

रुकमणी कुछ और पूछना चाह रही थी कि इतने में दनदनाती हुई सुदीप्ता आ गई । रुकमणी को वहां देखकर वह एकदम से चौंक गई और वापस जाने लगी । इतने में लीना खड़ी होकर कहने लगी "आइए मैम । प्लीज बैठिए" । 
सुदीप्ता रुकमणी पर गहरी निगाह डालते हुए बोली "अभी तो आप व्यस्त हैं । बाद में मिलते हैं" । यह कहकर सुदीप्ता तेज गति से वहां से चली गई । रुकमणी भी अपनी केबिन में आ गई । 

क्रमश : 

श्री हरि 
28.4.23 

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